– ग़ज़ल –
माना कि उनसे दूर का भी वास्ता नहीं
राहें जुदा जुदा सही मन्जि़ल जुदा नहीं
तूफाँ डरा रहा है हमें क्यों ये बार बार
क्या उसका ही खुदा है हमारा खुदा नहीं
गिरने के बाद उठने की उम्मीद है मगर
नज़रों से गिर गया जो कभी फिर उठा नहीं
आराम गाहे ताज यह जमना की खामशी
शब भर की चाँदनी से अभी दिल भरा नहीं
तेरे बग़ैर क्या कहें अब ज़िन्दगी का हाल
कटने को कट रही है मगर कुछ मज़ा नहीं
उनका खयाल उनकी तमन्ना उन्हीं का ग़म
क्या चीज़ की कमी है मेरे पास क्या नहीं
सालिक ये कहता रह गया कर दीजिये मुआफ़
कहने को मैं बुरा हूँ मगर दिल बुरा नहीं
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