तेरी हर अदा सितमगर ़़़

– ग़ज़ल – तेरी हर अदा सितमगर तेरी हर निगाह ज़ालिम तेरी शोखि़यों से कितने हुए घर तबाह ज़ालिम अगर अह्ले ग़म पे अब भी न हुई निगाह ज़ालिम किसी और से बढ़ा लें न वो रस्मो-राह ज़ालिम तेरी ख़ातिरन अदू से भी किया निबाह ज़ालिम न मिले गा कोई मुझसा तेरा ख़ैर ख़्वाह ज़ालिम मुझे ये न थी तवक्को कभी तुझसे आह ज़ालिम कि तू इस तरह करेगा मेरा दिल तबाह ज़ालिम तेरी बेरुख़ी के सदक़े मुझे भी तो कुछ ख़बर हो मेरी क्या ख़ता है मुझसे हुआ क्या गुनाह ज़ालिम मेरी हर वफ़ा के बदले हुए मुझपे ज़ुल्म क्या-क्या मेरे दिल में है अभी तक वही तेरी चाह ज़ालिम मेरी ज़ात से जब इतनी तुझे बदगुमानियां हैं कोई कैसे फिर मिटाए तेरा इश्तबाह ज़ालिम मेरी बस यही दुआ है कहीं तू भी दिल लगाए तुझे हो किसी से उल्फ़त करे तू भी आह ज़ालिम कभी ऐसा दिन भी आए तुझे हो अज़ी़ज जौहर कि है ज़ौ से जिसकी रौशन तेरी बारगाह ज़ालिम (1948, शायर– जौहर मगहरी)...